मूवी रिव्यू: भेड़िया (2024)

हिंदी फिल्म जगत में हॉरर और कॉमिडी फिल्मों का हमेशा से एक विशेष दर्शक वर्ग रहा है, जो इस तरह की फिल्मों को चलाता रहा है, मगर हॉरर-कॉमिडी के कॉम्बिनेशन वाला सिनेमा बॉलिवुड में ज्यादा देखने को नहीं मिलता। 'भूल भुलैया' और 'गो गोवा गोन' जैसी कुछेक फिल्मों के बाद अमर कौशिक वो फिल्मकार साबित हुए, जिन्होंने 'स्त्री' के रूप में सुपर हिट हॉरर-कॉमिडी दी थी और अब वे ही वरुण धवन और कृति सेनन के साथ हॉरर और कॉमिडी के रंग में रंगी 'भेड़िया' लेकर आए हैं। 'लक्ष्मी', 'रूही', 'भूल भुलैया 2' और 'भूत पुलिस' के बाद दर्शकों में डर और हास्य के मिश्रण को लेकर एक समझ डेवलप हुई है, उसी को ध्यान में रखते हुए अमर कौशिक अपनी फिल्म की कहानी बुनते हैं और मानना पड़ेगा कि वे निराश नहीं करते।

'भेड़िया' की कहानी
दिल्ली का महत्वाकांक्षी कॉन्ट्रैक्टर भास्कर (वरुण धवन) अपने कजिन जनार्दन (अभिषेक बैनर्जी) के साथ अरुणाचल प्रदेश के एक घने जंगल में हाईवे की सड़क बनाने का कॉन्ट्रेक्ट लेकर आता है। इस कॉन्ट्रेक्ट को हासिल करने के लिए भास्कर अपना पुश्तैनी घर गिरवी रख कर आया है और वो किसी भी कीमत पर अपना प्रोजेक्ट पूरा करने पर आमादा है। वहां आने पर उसे पता चलता है कि स्थानीय लोग उस प्रोजेक्ट को प्रकृति के साथ छेड़खानी के रूप में देख रहे हैं। इस महामार्ग के लिए उनके जंगल कट जाएंगे, ये सोच कर वे विरोध पर उतर आते हैं, मगर भास्कर उन्हें डेवलपमेंट की दुहाई देकर राजी करना चाहता है। उसके प्रोजेक्ट में उसका साथ देता है, लोकल युवा जोमिन (पालिन कबाक), तो पांडा (दीपक डोबरियाल) उसे आने वाले संकट से आगाह करता है। एक रात जंगल से लौटते हुए भास्कर को एक भेड़िया काट लेता है, भास्कर किसी तरह अपनी जान तो बचा लेता है, मगर उसके अंदर भेड़िये की शक्तियां आ जाती हैं। वह एक इच्छाधारी भेड़िया बन बैठता है। उसकी सचाई से अनजान जनार्दन और जोमिन उसे जानवरों की डॉक्टर अनिका (कृति सेनन) के पास लेकर आते हैं और उसके जख्म का इलाज करवाते हैं। इसी बीच पांडा खुलासा करता है कि सालों से उन घने जंगलों में विषाणु (भेड़िया) का वास है और जो भी जंगल को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, विषाणु उसका नाश कर देता है। इसके बाद जंगली जानवर के हमले द्वारा होने वाली मौतों का सिलसिला शुरू हो जाता है। पूरा इलाका आतंक के काले साये में घिर जाता है। क्या मौतों का ये सिलसिला थमेगा? विषाणु कोई दंतकथा है या फिर कोई भयानक सच? क्या भास्कर इच्छाधारी भेड़िये की शक्तियों से मुक्त होकर एक सामान्य आदमी बन पाएगा? इन सभी सवालों के जवाब आपको फिल्म में मिलेंगे।

फिल्म में रह गईं ये कमियां
हॉरर और कॉमिडी के कॉम्बिनेशन को फिल्मकार हमेशा से रिस्की मानते रहे हैं, यही वजह है कि इस जॉर्नर की सीमित फिल्में देखने को मिलती हैं, मगर 'स्त्री' और 'बाला' के निर्देशक अमर कौशिक इसे खूबी से निभा ले जाते हैं। हालांकि फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा धीमा है, मगर इंटरवल के बाद फिल्म रफ्तार पकड़ लेती है। फिल्म का प्री क्लाइमेक्स भी थोड़ा खिंचा हुआ लगता है। कुछ सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं। फिल्म देखने से पहले धड़का लगा हुआ था कि ये अब तक की वेयर वुल्फ फिल्मों की सस्ती नकल न साबित हो, मगर इसका तगड़ा वीएफएक्स आशंका को निर्मूल साबित करता है।

फिल्म में हंसी और डर के साथ मैसेज भी
वरुण के इंसान से भेड़िया का रूपांतरण प्रभावी है। निर्देशक इसे अरुणाचल के जंगलों से जोड़ने में कामयाब रहे हैं। फिल्म के वीएफएक्स के अलावा इसकी सिनेमेटोग्राफी भी इसका मजबूत पहलू हैं। जिशनु भट्टाचार्यजी के कैमरे के लेंस से अरुणाचल की खूबसूरती, रहस्यमय जंगल और पूनम के दूधिया चांद को देखना विजुअल ट्रीट साबित होता है। फिल्म में हास्य और हॉरर के साथ सामाजिक सरोकार के मुद्दे भी हैं। जैसे प्रगति के नाम प्रकृति का नाश, उत्तर-पूर्व के लोगों के साथ होने वाला भेदभाव, अरुणाचल को देश का हिस्सा न समझना आदि। लेखक नीरेन भट्ट के 'आज के जमाने में नेचर की किसको पड़ी है, हमारे लिए बालकनी में रखा गमला ही नेचर है।', 'कोई बात नहीं भाई तेरे लिए जो मर्डर है, उनके(जानवर) के लिए वो डिनर है' जैसे संवाद या फिर शहनाज गिल का जगत प्रसिद्ध डायलॉग, 'तो मैं क्या मर जाऊं?' सोच प्रेरक होने के साथ-साथ हंसाते भी हैं। फिल्म का संगीत सचिन-जिगर ने दिया है जबकि गीत अमिताभ भट्टाचार्य द्वारा लिखे गए हैं। जिसमें 'जंगल में कांड हो गया' और 'बाकी सब ठीक-ठाक है', जैसे गाने अच्छे बन पड़े हैं। फिल्म में 'चड्ढी पहन के फूल खिला है' जैसे गाने को भी बहुत ही हलके-फुलके अंदाज में पिरोया गया है।

एक्टिंग के मामले में नहीं है कम
अभिनय के मामले में भी फिल्म कमतर नहीं है। वरुण भास्कर और भेड़िये दोनों ही रूपों में हास्य और हॉरर का संतुलन बनाने में कामयाब रहते हैं। उनके किरदार के ओवर द टॉप जाने की पूरी संभावना थी, मगर उन्होंने अपने किरदार को जरा भी नाटकीय नहीं होने दिया। बदलापुर, सुई धागा और ऑक्टोबर जैसी फिल्मों के बाद इस फिल्म में वरुण अभिनेता के रूप में कुछ पायदान और चढ़ जाते हैं। कृति सेनन अपने अलग रोल और लुक में जंचती हैं। फिल्म में उनकी भूमिका काफी अहम है। अभिषेक बनर्जी और दीपक डोबरियाल को फिल्म में अच्छा-खासा स्क्रीन स्पेस मिला है और इन दोनों ही कलाकारों ने अपने अभिनय के दम पर कॉमिडी की खुराक को पूरा किया है। अभिषेक की कॉमिक टाइमिंग अच्छी है। जोमिन के रूप में पालिन कबाक मासूम और भले लगते हैं और कॉमिडी में भी खूब साथ देते हैं। फिल्म के अंत में स्त्री से कनेक्शन भी दिखा दिया गया है।

'भेड़िया' का ट्रेलर देखें:

क्यों देखें -मजेदार हॉरर-कॉमिडी र दमदार वीएफएक्स के लिए ये फिल्म देखें।

मूवी रिव्यू: भेड़िया (1)

लेखक के बारे में

रेखा खान

रेखा खान टाइम्स समूह के नवभारत टाइम्स में फीचर्स एंड एंटरटेनमेंट एडिटर हैं। उन्हें प्रसिद्ध प्रकाशनों, पत्रिकाओं और रेडियो में काम करते हुए दो दशक से भी ज्यादा का समय हो गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए उन्हें स्त्री शक्ति पुरस्कार, पावर ऑफ पेन, मोस्ट इंस्पायरिंग वुमन इन जर्नलिज्म, मोस्ट पावरफुल वुमन इन मीडिया जैसे कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। जर्नलिज़म के अलावा रेखा को लिखना और पढ़ना भी बहुत पसंद है। उन्होंने 'कोई सपना न खरिदो' नामक एक गुजराती उपन्यास लिखा है। वह एक बहुत अच्छी वक्ता और एंकर हैं। टीवी शोज की एंकरिंग के साथ-साथ वह अभिनय में भी अपना हुनर दिखा चुकी हैं।... और पढ़ें

मूवी रिव्यू: भेड़िया (2024)
Top Articles
Latest Posts
Article information

Author: Foster Heidenreich CPA

Last Updated:

Views: 6271

Rating: 4.6 / 5 (56 voted)

Reviews: 87% of readers found this page helpful

Author information

Name: Foster Heidenreich CPA

Birthday: 1995-01-14

Address: 55021 Usha Garden, North Larisa, DE 19209

Phone: +6812240846623

Job: Corporate Healthcare Strategist

Hobby: Singing, Listening to music, Rafting, LARPing, Gardening, Quilting, Rappelling

Introduction: My name is Foster Heidenreich CPA, I am a delightful, quaint, glorious, quaint, faithful, enchanting, fine person who loves writing and wants to share my knowledge and understanding with you.